दिल्ली (अश्विनी भाटिया)/कोरोना संक्रमण से बेपरवाह शराब को किसी भी तरह से प्राप्त करने की नशेड़ियों की हरकत ने दिल्ली सरकार को यह कदम उठाने को प्रेरित किया।दिल्ली सरकार ने शराब की एम आर पी पर 70 प्रतिशत टैक्स बढ़ाया । लॉक डाउन के कारण पिछले कई दिन से शराब की दुकानें भी बंद थी, इससे पीने वालों को तो दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था ,साथ ही सरकार को भी आर्थिक नुकसान हो रहा था।
सरकारों को सबसे अधिक पैसा शराब व अन्य मादक पदार्थों से मिलने वाले टैक्स से प्राप्त होता है।4 मई से सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने का निर्णय लिया और इसकी बिक्री लॉक डाउन के रहते भी कुछ दिशा निर्देशों के साथ शुरू कर दी गई। कई दिनों के बाद खुली शराब की दुकानों पर लोग टूट कर पड़े।शराब लेने के उतावले लोग सभी दिशा -निर्देशों को रौंदकर दुकानों पर भीड़ लगाकर एकत्र हो गए।लोगों की दुकानों पर धक्का-मुक्की और अधिक से अधिक शराब लेने की हौड़ के कारण भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को कई स्थानों पर लाठीचार्ज भी करना पड़ा।लोगों की शराब के प्रति पीने वालों के उमड़े प्रेम को भांपते हुए सरकार की समझ में भी आ गया कि लोग शराब के लिए कोई भी कुर्बानी देने को बेताब हैं। सरकार भी कई दिन से टैक्स न मिलने के कारण बेचैन हुई पड़ी थी।दिल्ली सरकार ने कोई दूसरी व्यवस्था करने की बजाए इसकी कीमत पर भारी टैक्स लगाकर अपना कोष भरने की आसान तरकीब खोज ली है। सरकार के इस कदम से तो ऐसा लगता है कि शराबियों के पीने से ज्यादा सरकार को इस बेचने की लत लगी हुई है, तभी तो धार्मिक स्थल खोलने से ज्यादा सरकार को शराब की दुकानें खोलने की जल्दी थी। सरकार अपने नागरिकों को नशे से दूर रखने की बजाए उनको खुद इसके लिए प्रेरित करे तो इसको किस तरह से जनहित की सरकार कहा जा सकता है?(वॉयस ऑफ भारत) |