दिल्ली (अश्विनी भाटिया )/सरकार के लाख दावों के बावजूद किसानों के सामने यक्ष प्रश्न कि वह अपनी उपज को कैसे बेचे? कोरोना वायरस से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन का फायदा फिर वो वर्ग उठाने में जुट गया है जो खुद को व्यापारी बताता है और काम मुनाफाखोरी का करता है। इस महामारी में जहां इंसानों को मौत से बचने के लिए अपने घरों में कैद रहना पड़ रहा है वहीं यह कथित व्यापारी वर्ग दोनों हाथों से पीड़ित लोगों को लूटने में जुट गया है। आज हालात यह है कि इस संकट की घड़ी में हर उपभोक्ता वस्तु के दामों में बढ़ोतरी कर दी गई है। प्रत्येक दाल के दाम प्रति किलो 25-30 रुपए बढ़ाकर जनता से वसूले जा रहे हैं।आटा 35 से 40 रुपए प्रति किलो बेचा जा रहा है।
जहां एक ओर खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ाकर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है वहीं किसानों की रबी फसल को ओने -पौने में खरीदने का काम शुरू किया जा चुका है। सरकार के दावे बहुत हैं कि किसानों को उनकी उपज जिसमें गेंहू, जों, चना, मसूर और सरसों शामिल है,को सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था की जा रही है, परंतु धरातल पर कुछ नहीं है। मेरी कई किसानों से बात हुई है जिन्होंने बताया कि उनको सरकारी दावों का कोई लाभ नहीं मिल रहा क्योंकि सरकारी नीति की जटिलताओं के कारण वह इस प्रक्रिया के तहत अपनी फसल नहीं बेच पा रहे।किसान अपनी उपज को स्टोर नहीं कर सकता है, क्योंकि उसके पास न तो इतनी व्यवस्था है और न ही इतनी गुंजाईश है कि वो हालत सामान्य होने तक अपनी उपज को न बेचे। सरकार द्वारा किसानों से उनकी फसल खरीदने की कोई कारगर व्यवस्था अभी तक नहीं बनी है क्योंकि सरकार के के कोरोना से निपटने में ही हाथ -पांव फूले हुए हैं। जबकि किसान को पैसा चाहिए और पैसा व्यापारी वर्ग के पास है,। किसानों की इसी मजबूरी का फायदा मुनाफाखोर व्यापारी उठा रहा है। सरकार ने रबी कीअलग -अलग फसल के जो रेट तय किए हैं उनसे बहुत ही कम कीमत पर उनकी फसल को मंडी में बेचने को कहा जा रहा है। सरसों का सरकारी दाम 44 सौ25 रुपए प्रति किवंटल है जबकि किसान से सरसों मण्डी में सिर्फ 35-36 सौ रुपए किवंटल बेचने को कहा जा रहा है। इसी तरह से जों14 सौ रुपए किवंटल खरीदे गए हैं जबकि इसका सरकारी रेट 15सौ 25 रुपए तय है। इसी तरह से अभी जबकि गेंहू n निकाली जा रही है उसका दाम सिर्फ 17 सौ रुपए किवंटल ही बताए जा रहे हैं। मजेदार बात यह है कि इस समय बाजार में आटा35 से40 रुपए किलो उपभोक्ताओं को खरीदना पड़ रहा है। गेंहू का सरकारी रेट 19 सौ 25 रुपए तय है। किसानों से फसल खरीदने की सरकार की नीति व्यावहारिक न होने के कारण किसान इसी व्यापारी तबके के हाथों लुटने को विवश है। यह व्यापारी वर्ग एक ओर अनाज पैदा करने वाले किसान से सस्ते दाम में फसल खरीद कर माल काटता है तो दूसरी ओर किसानों से खरीदी गई इन्हीं खाद्य वस्तुओं को स्टोर करके जनता को ऊंचे मुनाफे पर बेच देता है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद किसानों को बिचौलियों के शोषण से कोई नहीं बचा पा रहा। |