हिन्दुओं को मुसलमानों से कुछ सीखना भी चाहिये न कि सिर्फ उनकी आलोचना ही करनी चाहिए। मुस्लिमों से यह सीखना चाहिए किअपने मजहब् /धर्म को मानने वाले के लिये आवाज उठाना और अपनी बात मनवाने के लिये हिंसा भी करने से पिछे न हटना चाहिए।यही है इसलाम का मूलमंत्र ज़िसकी वजह से इसलाम दुनिया भर में फैल गया गया। हिन्दुओं में एकता का भाव ही नहीं है, यही इस धर्म के सिकुडने का मुख्य कारण भी बनता जा रहा है।
इतिहास गवाह है कि अहिंसा कभी भी हिंसा के आगे टिक नहीं पायी।हिन्दुओं को यह समझ 1000 साल तक गुलाम रहने के बाद भी नहीं आ रही कि उनकी सहनशीलता ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है। महमूद गजनवी का उदाहरण हमारे सामने है। सन 1947 में देश के विभाजन के समय पंजाब और बंगाल में हिन्दुओं के साथ मुसलमानों और पकिस्तान सरकार ने बहुत घिनौने अत्याचार किए,परंतु मजाल है कि तब भी देश के दुसरे प्रदेशों में रहने वाले हिन्दुओं के खून अपने भाइयों के पक्ष में कोई ऊबाल आया हो ।कशमीर से हिन्दुओं को मारा – पिटा, लूटा गया , उनकी बहिन -बेटियों केअस्मिता को तार -तार किया गया और उनको अपने घरों से निकाल दिया गया, मगर देश का बहुसंख्यक हिन्दू चिर निद्रा में सोया रहा उसमें कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई। इसको हिन्दुओं की सहनशीलता कहें या कमजोरी।आखिरकार घाटी से हिन्दुओं को पलायन करना ही पड़ा।आज भी कशमीरी हिन्दूअपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैँ ज़िनके लिये न तो हिन्दु बोलते हैँ न ही सरकारें। दूसरी ओर भारत का मुसलमान मयनमार के रोहिंग्या मुस्लिम के लिये शोर मचाता है और उनको भारत में शरण देने की मांग करता है और उसमें कामयाब भी हो जाता है। हिन्दु और मुस्लिम में यही अन्तर है, हिन्दु अपने पड़ोस में पिट रहे हिन्दु की मदद भी नहीं करता और मुस्लिम सात समुन्द्र पार भी पीड़ित मुसलमान के साथ उठ खड़ा होता है , फिर बेशक चाहे वो आतंकी ही क्यों न हो।और उसको साथ देने के लिए मरने -मारने तक ऊतारू हो जाता है ।मेरी समझ में तो मुस्लिमों में यह जो ब्रदरहुड की अवधारणा रची -बसी हुई है यही उनकी विस्तार का एकमात्र कारण है। दूसरी ओर हिन्दुओं में अपने धर्म के माननेवालों को अपना भाई न समझना ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है, ज़िसका फायदा मुसलमान और दूसरे धार्मिक संगठन पिछले लम्बे समय से उठा रहे हैँ।हम हिन्दुओं को हमारे धर्म के शंकराचार्यों,धर्माचार्यों, साधु -संतों, डेरे के महंतों,बाबाओं,मठाधीशों,पंडितों और कथावाचकों ने कभी यह सीख नहीं दी कि हिन्दू दूसरे हिन्दू को अपना भाई समझे और विपत्ति में उसकी मदद को खड़ा हो चाहे वह पीड़ित दुनिया के किसी भी कौने में क्यों न रहता हो।अगर समय रहते हम हिंदुओं ने इससे कोई सबक नहीं सीखा तो आने वाला समय हमारे और हमारे धर्म के अस्तित्व के लिय बड़ा खतरा बन जायेगा । मुस्लिम देश पकिस्तान, बंगलादेश इसका प्रमाण है। अफगानिस्तान इसका सबसे ताजा उदाहरण हमारे सामने है जो बिल्कुल हिन्दू और सिख विहीन कर दिया गया है।अपने देश के ही कई हिस्सों- कश्मीर, बंगाल, केरल और नॉर्थ ईस्ट के कई इलाके इसका सटीक उदाहरण हमारे सामने है कि हिन्दुओं की क्या दूर्दशा वहां हो रही है । हिन्दुओं को अपनी सोच बदलनी चाहिए,क्योंकि सिर्फ पूजा- पाठ,धार्मिक आडंबर और किस्से -कथाओं और ईश्वरीय चमत्कारों की आस से ही अब हमारा अस्तित्व नहीं बचाने वाला।
वॉयस ऑफ भारत)