दिल्ली (अश्विनी भाटिया)/लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने और सरकार का विरोध करने का अधिकार है, परंतु यह अधिकार दूसरों के अधिकारों का हनन करने लगे तो फिर कानून की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाए। किसानों को सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को लेकर अपना विरोध प्रकट करने का पूरा अधिकार है और वह पिछले 10 दिनों से देश की राजधानी को घेरे भी हुए हैं। सरकार इस दौरान किसान प्रतिनिधियों से चार दौर की वार्ता भी कर चुकी है और उनकी आपत्तियों पर विचार करने की बात भी कर चुकी है।
पांचवे दौर की वार्ता भी होनेवाली है और उसमें कोई हल निकालने की भी मंशा सरकार की है क्योंकि इस आंदोलन से हो रही आम आदमी की परेशानी के साथ -साथ आंदोलन को इसमें घुसे कुछ हिंसक और अलगाववादी तत्त्वों से भी बचाना जरूरी हो चुका है। इस बात से कोई असहमत नहीं ही सकता कि देश के किसान की स्थिति आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी नहीं सुधरी है। आज भी अधिकांश किसान गुर्बत का जीवन जीने को मजबूर है। किसानों की मेहनत को लूटने में दलाल और कृषि मंडियों में बैठे आढ़ती लूट लेते हैं और वह लूटा -पिटा हुआ सिर्फ अपने भाग्य को किसने के अलावा कुछ नहीं कर पाता। ऐसा नहीं है कि किसानों ने अपनी दशा को सुधारने हेतु पहले कभी संघर्ष नहीं किया हो परंतु हर बार वह ठगा गया और इस ठगी में इसके कथित नेता भी हिस्सेदार बने रहे। किसानों के नाम पर नेतागिरी करने वालों की अगर आर्थिक स्थिति की पड़ताल ईमानदारी से की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ सकती है। वर्तमान आंदोलन की बात की जाए तो इसमें सबसे अधिक बढ़ -चढ़कर पंजाब के किसान हिस्सेदारी कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि नए कृषि कानूनों से सबसे ज्यादा उनको ही परेशानी है। ऐसा नहीं कि यह कानून सिर्फ पंजाब के किसानों को प्रभावित करेगा देश के अन्य राज्यों के किसान इससे से अछूते रहेंगे। इस बात को समझने की जरूरत है कि पंजाब के किसान अधिक परेशान क्यों हैं और क्यों अकाली, कांग्रेस व आप पार्टी इसमें अपनी राजनीति करने में लगी है। जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाने की प्रमुख मांग किसानों की है उसका सबसे अधिक लाभ पंजाब के किसानों को हो रहा है। यह भी हकीकत है कि पंजाब में अकाली और कांग्रेस ने हो राज किया है और कृषि उपज मंडियों में इन्हीं के लोग ही आढ़ती का चौला पहनकर और प्रतिनिधियों /बोर्ड में वर्षों से कब्जा जमाया हुए है। यही आढ़ती और मण्डी समितियों में बैठे लोग ही किसानों का शोषण कर रहे हैं और अपने राजनैतिक नेताओं को भी फंडिग करते हैं। मोदी सरकार ने इसी तरह के दलालनुमा किसानों से आम किसानों को मुक्त करवाने हेतु नए कानून बनाए हैं जो किसानों की उपज को कृषि मंडियों के साथ- साथ अन्य बड़ी कम्पनियों को खरीदने का अवसर प्रदान करती है। सरकार के इस कदम से किसान को मंडियों के साथ ही दूसरे लोगों को अपनी फसल बेच कर अधिक पैसा पाने का अवसर मिलेगा। इस कानून के आने से आढ़तियों और किसान रूपी दलालों को चोट पहुंचनी है और इसीलिए इस आंदोलन को भड़काने में सबसे बड़ा योगदान इन्हीं लोगों का है। वास्तविकता यह भी है कि कांग्रेस का चरित्र दोगला है वह यहां तो इस आंदोलन का समर्थन कर रही है वहीं राजस्थान में अपनी सरकार होने के बावजूद किसानों न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एम एस पी पर खरीफ की फसल नहीं खरीदती और किसानों को बहुत कम दामों में अपनी उपज बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2150/रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित है और राजस्थान का किसान को सिर्फ1250/रुपए प्रति क्विंटल के दाम मिल रहे हैं। कांग्रेस को इस बात का जवाब देना चाहिए कि उसकी यह दोगली मानसिकता कैसे किसानों के हित में है? |