तांडव मचाना शुरू कर दिया है।दिल्ली कोरोना संक्रमण के मामले में देश के सभी राज्यों को पछाड़ दिल्ली (अश्विनी भाटिया)/देश की राजधानी में कोरोना ने अपना खुला ती हुई अब तीसरे स्थान पर पहुंच गई है। यहां प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। सिर्फ यह रिपोर्ट लिखे जाने के पूर्व के24 घंटों में कोरोना के1024 नए मरीज बढ़ गए जिससे दिल्ली के आनेवाले दिनों की भयावह स्थिति की कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है। दूसरी ओर दिल्ली सरकार कोरोना संक्रमित मरीजों और इससे होने वाली मौतों के सहीआंकड़े भी छुपा रहे हैं, ऐसा आरोप आप सरकार पर लग रहा है।केजरी की निक्कमी सरकार के सभी दावे धराशायी साबित हो रहे हैं। यह एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने घर से बाहर नहीं निकले और सिर्फ टीवी और समाचार पत्रों में विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च करके कोरोना योद्धा बने हुए हैं। अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से न संभाल पा रही केजरी सरकार पर यह भी आरोप है कि यह राहत वितरण में भी सिर्फ समुदाय विशेष को ही प्रमुखता दे रहे हैं। इस सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति भी संक्रमण रोकने में बाधक बनी हुई है। पहले मरकज और बाद में मजदूरों को गुमराह करके सड़कों पर उतरवाने से भी दिल्ली में संक्रमण को फैलने का अवसर मिला है। इस सरकार के गरीब जनता को सरकारी राहत सामग्री देने की जांच होने पर इसमें भी बड़े घोटाले की परतें खुल सकती हैं। दिल्ली के मौहल्ला क्लीनिकों को विश्व का उत्तम स्वास्थ्य सुविधा केंद्र बताने वाली इस सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि महामारी के इस दौर में यह स्वास्थ्य केंद्र कहां लोप हो गए हैं।यहां तमाम सरकारी दावों की पोल तो सरकारी अस्पतालों में जब मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया जाता है,तब खुल जाती है। सरकारी अस्पतालों में कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है और निजी अस्पतालों ने खुली लूट मचा दी है। समझ यह नहीं आता कि खुद को सत्यवादी राजा हरीश चन्द्र की औलाद होने का दावा करनेवाला यह मुख्यमंत्री, इन निजी अस्पतालों की लूट पर किस लिए मौन धारण किए हुए है। केजरी सरकार के अस्पतालों की सही तस्वीर तो तब ही समझ में आ गई जब कोरोना संक्रमण के लक्षण पाए जाने पर थाना नंदनगरी के एस एच ओ को किसी भी सरकारी अस्पताल ने भर्ती नहीं किया। बाद में उसकी बेटी ने जब कई जगह गुहार की तो पुलिस आयुक्त के दखल के बाद उनको भर्ती करवाया जा सका। दिन प्रतिदिन बिगड़ते हालात देखकर तो ऐसा लगने लगा है कि दिल्ली को लंदन बनानेवाले नौटंकी लाल ने इसको वुहान में तब्दील करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है। सरकारी अस्पताल जहां सरकार की मक्कारी और अव्यवस्था का शिकार बन गए वहीं दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों को इस महामारी में अनुचित लाभ कमाने का मानो सुनहरे अवसर मिल गया। इन अस्पतालों को न तो सरकार का डर है और न भगवान का कोई खौंफ है। ईलाज करने की बजाए सिर्फ पैसा वसूलना ही इन अस्पतालों का एकमात्र ध्येय बन चुका है। इन निजी अस्पतालों में किसी भी मरीज को बड़ी ही चिरौरी करने के बाद तो लिया जाता है और बाद में लाखों रुपए के बिल वसूलने के बाद जब मरीज भी नहीं बचता तो, पीड़ित परिवार की जो स्थिति होती है उसको सहज ही नहीं समझा जा सकता। जनता भी इस संक्रमण से बचने के सभी बचाव के उपाय अब भी मानने को तैयार नहीं है। जनता को अब भी यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी होगी कि जान है तो कम खाकर भी जीवित रह सकते हैं और लापरवाही हुई तो कोरोना से उनको कोई नहीं बचा पाएगा। एक की लापरवाही उसके पूरे परिवार सहित कई अन्य लोगों का जीवन भी मुसीबत में डाल सकती है।दिल्ली के लोगों को अब यह बात अच्छी तरह से समझ आ रही होगी कि केजरीवाल का फ्री का बिजली -पानी बहुत ही महंगा सौदा साबित होनेवाला है जो उनकी जान को इनकी कीमत के रूप में मांग रहा है। (वॉयस ऑफ भारत) |