दिल्ली(अश्विनी भाटिया)/दिल्ली में अभी भाजपा ने250 मंडलों पर अध्यक्षों तो की नियुक्ति की है। इन नियुक्तियों से कई जगह पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में रोष भी है और वह दबी जुबान में अपना दर्द भी और को बता रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि भाजपा के कठिन समय में जिन लोगों ने पार्टी के लिए दिन– रात मेहनत की, कष्ट झेले, पुलिस की लाठियां खाई और अपने परिवार को भी आर्थिक संकटों में डाल दिया,
आज जब पार्टी को सत्ता मिल गई तो कौन पूछता है उन पुराने कार्यकर्ताओं को? आज जो नेता येन केन प्रकारेन किसी पद पर विराजमान होने में सफल हो चुका है, उस ने अपने इर्द- गिर्द चापलूसों की घेराबंदी कर ली है। मजेदार बात यह है कि जो लोग विधायक और निगम पार्षद बन चुके हैं उनमें से अधिकांश के चहेते या तो बिल्डर माफिया हैं या उन्होंने अपने चहेतों को बिल्डर बना लिया है। यही बिल्डर माफिया, सट्टेबाज ही आज भाजपा के कर्मठ कार्यकर्त्ता बनकर घूम रहे हैं और परिणाम सामने है दिल्ली की सत्ता पर कई दशक बीतने के बाद भी पार्टी का निकट भविष्य में भी दिल्ली की सत्ता पर आधिपत्य होता दिखाई नहीं दे रहा। निगम पार्षद, विधायक हो या सांसद जनता को छोड़ो अपने कार्यकर्ताओं के सुख -दुख में शामिल होते हैं, सभी जानते हैं। कांग्रेस की राह पर चल रही दिल्ली की इकाई को यह नहीं समझ आ रहा कि पार्टी संगठन में जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह देने से ही पार्टी को लाभ होगा ना कि अपने करीबी चंपुओं को पदों पर बैठाने से। नहीं समझोगे तो कांग्रेस का हश्र देख लो जीता -जागता उदाहरण सामने है।( वॉयस ऑफ भारत) |