कुश्ती के साथ -साथ छोटे पर्दे पर भी खास मुकाम बना रहे हैं पवन दलाल

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आज कुश्ती के क्षेत्र में भारत विश्व पटल पर एक ऊँचा मुकाम रखता है। कुश्ती और बॉक्सिंग में हरियाणापंजाब के खिलाडियों ने देश को एशियाई और ओलम्पिक खेलों में मैडल जीतकर भारत की प्रतिष्ठा को बचाया है। हरियाणा में हर छोटेबड़े गांव की मिट्टी में पहलवान तैयार किये जा रहे हैं और सरकार भी इस ओर आर्थिक मदद देकर खिलाडियों को प्रोत्साहन देने में लगी हुयी है।

कुश्ती में हरियाणा के झझर जिले के  इक छोटे से गांव से संबंध रखनेवाले पहलवान पवन दलाल का नाम भी आज उभरते खिलाडियों में लिया जा सकता है। पवन ने सजगवार्ता डॉट कॉम प्रतिनिधि से एक मुलाकात के दौरान बताया कि बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। किसान परिवार से संबंध होने के कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन उनके चाचा पहलवान रमेश दलाल ने उनको कुश्ती के लिए प्रोत्साहित किया और आज वो जिस मुकाम पर भी हैं उसके लिए उनके चाचा का विशेष योगदान है। वर्तमान में पवन दलाल हिन्द केसरी सोनू पहलवान [मन्डोथी ]जी के पास प्रैक्टिस करके कुश्ती के नए दांव -पेच सीख रहे हैं। 

 

भारत में कुश्ती का चलन आदि काल से चलता आ रहा है और पहलवानों  का समाज में एक अलग पहचान और प्रभाव भी रहा है। भारत के परंरागत खेलों में कुश्ती सबसे लोकप्रिय खेल रहा है। देश के ग्रामीण क्षेत्रो में कुश्ती या दंगल जीवन का अहम हिस्सा रहा है। पिछले कुछ दशकों में क्रिकेट ने भारतीय खेलों को पीछे छोड़ दिया और गांवों में भी छोटे -छोटे बच्चे भी बैट बॉल लेकर क्रिकेट खेलते नजर आते थे। क्रिकेट का जनून भारतीयों के सिर पर चढ़ कर ऐसा बोलने लगा कि सरकार ,खेल संगठन और जनता सभी का ध्यान सिर्फ इस विदेशी खेल क्रिकेट की ओर ही लग गया। हद तो तब हो गयी जब बड़ी -बड़ी कंपनियां भी क्रिकेट मैचों को ही प्रायोजक बनकर आर्थिक मदद पहुंचाने लगी। क्रिकेट प्रेम के चक्कर में भारतीय खेलों की उपेक्षा होने लगी और अंतराष्ट्रीय मुकाबलों में पदक तालिका में भारत सबसे निचले पायदान पर जा पहुंचा। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाला देश जब खेलों में पिछड़ गया तो ऐसे समय में कुश्ती ने ही भारत की लाज बचाई और फिर सरकार और दूसरे लोगों का ध्यान भी भारतीय पारम्परिक खेलों- कुश्ती -कब्बडी -हॉकी -खो-खो आदि की ओर भी जाना शुरू हुआ। 

 पहलवान पवन कुश्ती में नाम कमाने के साथ -साथ छोटे पर्दे पर भी अपना हुनर दिखाकर अपनी पहचान बनाने में लगे हुए हैं। अच्छी कद -काठी और कसरती शरीर के साथ -साथ आकर्षक चेहरा भी पवन को एक अलग पहचान दिलाने में कारगर सिद्ध हो रहा है। पवन एक मराठी सीरियल में भी काम कर रहे हैं और इस  मराठी सीरियल तूजात  जीव रंगला के लगभग  12 एपिसोड जी -मराठी चैनल पर प्रसारित हो चुके हैं। इस सीरियल में पवन को विलेन की भूमिका में दिखाया गया है जिसको दर्शकों ने खूब सराहा है। पवन को आमिर खान की दंगल फिल्म में भी एक छोटा सा रोल मिल चूका है। पवन कई कुश्तियां जीत चुके हैं और उनको कई ख़िताब भी मिल चुके हैं। वह महाराष्ट्र गुर्ज केसरी ,कर्नाटक केसरी का ख़िताब जीत चुके हैं। पवन इसके साथ ही पंजाब में  एक नं. की जोड़ी के मुकाबले में भी कुश्ती लड़ चुके हैं। पवन चांदी का गुर्ज प्राप्त ख्याति प्राप्त पहलवान हैं। वह कहते हैं कि हमारे गांव -देहात के आखाड़ों में आज भी वह सब सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है जो एक अच्छे पहलवान को तैयार करने के लिए आवश्यक समझी जाती हैं अगर सही सुविधाएँ और सही मार्गदर्शन मिल जाये तो अच्छे स्तर के पहलवान वहां से निकल सकते हैं। पहलवान पवन यह भी कहते हैं कि भारत में आज भी मैट की बजाय मिट्टी को अधिक मान्यता दी जाती है। वो कहते हैं कि पहलवान को मिट्टी की मान्यता मिले तो उसको पहचान भी अच्छी मिलती है और देहात के दंगलों में शामिल होने से पैसा भी अच्छा मिल जाता है। वह बताते हैं कि सुशील और योगेश पहलवान ने हरियाणा को पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई है। 

 

वह कहते हैं कि बेशक सरकार अब पहले से ज्यादा भारतीय खेलों को प्रोत्साहन दे रही है मगर खिलाडियों विशेषकर पहलवानों को सरकारी नौकरियों में और अधिक शामिल किया जाना चाहिए इससे भारतीय कुश्ती विश्व में भारत को और भी ऊँचा गौरव दिलाने में सक्षम होगी। पवन अब तक सैंकड़ों कुश्ती लड़ चुके हैं जिनमें उनका मुकाबला विदेशी पहलवानों से भी हो चूका है मगर वो अपने साहस और ईच्छा -शक्ति के बल पर हमेशा विजयी रहे हैं।पवन से जब यह पूछा कि वह पहलवान नहीं होते तो क्या करते तो वह बोले क्या करता खेती ही करता और क्या करता ?

पवन कहते हैं कि उनको प्रात ; काल सुबह  जल्दी उठकर अखाड़े में नित अभ्यास करना होता है और कुश्ती के नए -नए दांव -पेच भी सीखना जरूरी होता है। किसी भी मुकाबले के लिए हमें शारीरिक रूप से तो तैयार रहना ही चाहिए साथ -साथ मानसिक रूप से भी तैयार होना जरूरी होता है। पवन की खुराक में दूध -घी ,फल ,और अंडे भी शामिल होते हैं। पहलवानी के लिए जहां निरंतर अभ्यास की  की जरूरत होती है वहीं पौष्टिक और संतुलित आहार भी बहुत जरूरी होता है ,यह पवन का कहना है। 

अंत में पवन दलाल कहते हैं कि सरकार हालाँकि खेलों को लेकर पहले से ज्यादा संजीदा हुई है लेकिन अभी गांव -देहात में अभी ओर अधिक खेल मैदान ,छोटे -छोटे स्टेडियम ,आधुनिक उपकरणों सहित आखाड़ों का निर्माण करके और अच्छे कोचों के दिशा निर्देश में ग्रामीण क्षेत्रों से खेल प्रतिभाओं को निखारने का मौका देने की बहुत आवश्यकता है। वह आज के युवा वर्ग से भी यही कहना  चाहते हैं कि उनको खेलों की और ज्यादा ध्यान देना चाहिए इससे जहां उनका शारीरिक विकास सही तरह से होता है वहीं हम नशों और दूसरे व्यसनों से भी बचे रहते हैं। [प्रस्तुति ;अश्विनी भाटिया ]

 

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